जामनगर में एक सामूहिक विवाह कार्यक्रम में शामिल होने के बाद इमरान प्रतापगढ़ी ने 2 जनवरी को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया और बैकग्राउंड में कविता लगाई थी, जिसे लेकर एफआईआर दर्ज हुई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को सलाह दी है कि उसे कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के ऊपर दर्ज मुकदमे पर विचार करना चाहिए. इससे पहले 21 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इमरान को अंतरिम राहत देते हुए उनके खिलाफ गुजरात के जामनगर में दर्ज एफआईआर में किसी कार्रवाई पर रोक लगा दी थी. जस्टिस अभय एस ओका की अध्यक्षता वाली बेंच ने गुजरात सरकार और शिकायतकर्ता किशनभाई नंदा को नोटिस भी जारी किया था.
सोमवार (10 फरवरी, 2025) को मामला एक बार फिर सुनवाई के लिए लगा,लेकिन गुजरात सरकार के लिए पेश वकील ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांग लिया. कोर्ट ने उन्हें जवाब के लिए समय देते हुए कहा कि जिस कविता के लिए यह केस दर्ज हुआ है, उसका सही अर्थ समझने का प्रयास होना चाहिए. यह कविता किसी धर्म के विरोध में नहीं कही गई है. इसका मकसद अहिंसा की बात करना था.
जामनगर में एक सामूहिक विवाह कार्यक्रम में शामिल होने के बाद इमरान प्रतापगढ़ी ने 2 जनवरी को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया था. इस पोस्ट में उन्होंने बैकग्राउंड ऑडियो के तौर पर एक कविता लगाई थी. “ऐ खून के प्यासे लोगों सुनो..” जैसे शब्दों वाली कविता को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश बताते हुए 3 जनवरी को जामनगर के रहने वाले किशनभाई नंदा ने एफआईआर दर्ज करवाई. उस एफआईआर में बीएनएस की धाराएं 196 और 197 जोड़ी गई हैं. इन धाराओं में 5 साल तक की सजा हो सकती है.
इस केस को निरस्त करवाने के लिए इमरान ने गुजरात हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने दलील दी कि उनका मकसद शांति और प्रेम को बढ़ावा देना था, लेकिन हाई कोर्ट के जस्टिस संदीप भट्ट की बेंच ने इससे मना कर दिया. हाई कोर्ट ने कहा कि जांच अभी शुरुआती दौर में है. इमरान प्रतापगढ़ी एक सांसद हैं. उन्हें जिम्मेदारी से काम लेते हुए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए.